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नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
वो जल-बुझा कि आग जिस के शोला-ए-नफ़स में थी
वो तीर खा गया कमान जिस की दस्तरस में थी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
तुम्हें उदासी की रंजिशों से रिहा करेंगे
अगरचे हम ऐसे ख़ाक-ज़ादों की दस्तरस में शिफ़ा नहीं है
अरसलान अब्बास
नज़्म
मेरी तख़्ईल में है एक जहान-ए-बेदार
दस्तरस में मिरी नज़्ज़ारा-ए-गुल-हा-ए-चमन
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ये सारे बर्र-ए-आज़म बहर-ए-आज़म अब हमारी दस्तरस में हैं
अजब क़ुदरत अजब तस्कीन का एहसास होता था
इशरत आफ़रीं
नज़्म
वो एक लम्हा हज़ार सदियों के बंधनों से निकल कर आया
वो एक लम्हा जो दस्तरस के वसीअ हल्क़ों से दूर रह कर
आदिल मंसूरी
नज़्म
कि अबदालियों, नादिरी फ़ौज की दस्तरस से
बचें और बैठे रहें सारे हंगामों की ज़द से हट कर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सफ़ीर-ए-लैला तुम्ही बताओ जहाँ अकेला हो दास्ताँ-गो
वो दास्ताँ-गो जिसे कहानी के सब ज़मानों पे दस्तरस हो