नज़्र-ए-ख़ालिदा
दिल मसर्रत की फ़रावानी से दीवाना है आज
देखना ये कौन आख़िर ज़ेब-ए-काशाना है आज
कैफ़-ए-सहबा-ए-तरब में ग़र्क़-ए-मय-ख़ाना है आज
हर शजर साक़ी-ए-मय हर फूल पैमाना है आज
ग़ुंचा-ओ-गुल थे यही लेकिन ये रानाई न थी
इस गुलिस्ताँ में बहार इस धूम से आई न थी
नर्गिस-ए-मख़मूर है लज़्ज़त-ए-कश-ए-ख़्वाब-ए-निशात
फूट निकला है गुल-ए-नसरीं से सैलाब-ए-नशात
अहल-ए-महफ़िल के लिए मुश्किल है अब ताब-ए-नशात
आज पैमानों से छलकेगी मय-ए-नाब-ए-नशात
पर-फ़िशाँ है जज़्बा-ए-पिन्हाँ उभरने के लिए
मुज़्तरिब है ज़र्रा ज़र्रा रक़्स करने के लिए
फिर इधर आए न आए ये शमीम-ए-जाँ-फ़ज़ा
फिर मयस्सर हो न हो ऐसा समाँ ऐसी हवा
छेड़ इस अंदाज़ से ऐ मुतरिब-ए-रंगीं-नवा
टूट जाए आज इक इक तार तेरे साज़ का
ज़िक्र जिस का ज़ोहरा-ओ-परवीं के काशाने में है
वो सनम भी आज अपने ही सनम-ख़ाने में है
ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार
तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार
तेरे रुख़ से परतव-ए-मा'सूम-ए-मरियम आश्कार
तेरे जलवोें की सबाहत से फ़रिश्ते शर्मसार
गुल पशेमाँ क़ल्ब-ए-बुलबुल रश्क से दो-नीम है
तेरी बातों में ख़ुमार-ए-कौसर-ओ-तसनीम हैं
यूँ तो हम हर शम-ए-इल्म-ओ-फ़न के परवाने रहे
ये हक़ीक़त है कि हम तेरे भी दीवाने रहे
मुद्दतों अपनी ज़बाँ पर तेरे अफ़्साने रहे
तू रही बेगाना लेकिन हम न बेगाने रहे
याद तेरी इक ज़माने से हमारी दिल में थी
तू यहाँ आने से पहले भी इसी महफ़िल में थी
शौक़ की शोरिश जमाल-ओ-नूर का सैलाब है
हर कली साज़-ए-तरब है हर नज़र मिज़राब है
आँख हैराँ रूह-ए-अर्बाब-ए-वफ़ा बेताब है
ये हमारे ख़्वाब की ता'बीर है ये ख़्वाब है
लाला-ओ-गुल क्या चमन भी तेरे क़दमों पर निसार
ये गुहर-हा-ए-सुख़न भी तेरे क़दमों पर निसार
ऐ मुक़द्दस हूर ऐ पर्वर्दा-ए-मौज-ए-नसीम
रूह-ए-इशरत-गाह-ए-साहिल जान-ए-तूफ़ान-ए-अज़ीम
तू ने तुर्कों को दिखाई है सिरात-ए-मुस्तक़ीम
फूँक डाले हैं तअ'स्सुब के हिजाबात-ए-क़दीम
ज़ोफ़ दिखलाई है जब भी फ़ितरत-ए-अहरार ने
आग बरसा दी है तेरे नुत्क़-ए-गौहर-बार ने
रह चुकी है हाथ में तेरे वो तेग़-ए-बे-नियाम
जिस की जुम्बिश ने बदल डाला हुकूमत का निज़ाम
तर्क-ए-उफ़्तादा को तू ने ही दिया इज़्न-ए-ख़िराम
तेरे ही हाथों ने छलकाए हैं आज़ादी के जाम
तू ने जो एहसाँ किया हैं मिल्लत-ए-अहरार पर
नक़्श हैं अब तक सँवरना के दर-ओ-दीवार पर
हाँ बता दे हम को भी ऐ रूह-ए-अर्बाब-ए-नियाज़
किस तरह मिटता है आख़िर रंग-ओ-ख़ूँ का इम्तियाज़
दिल पे क्यूँ कर फ़ाश हो जाते हैं आज़ादी के राज़
छेड़ते हैं किस तरह महफ़िल में बेदारी का साज़
तेरी आँखों में सुरूर-ए-इशरत-ए-जम्हूर है
आह ये जौहर हमारी दस्तरस से दूर है
महरम-ए-दर्द-ओ-मसर्रत राज़-दार-ए-सुब्ह-ओ-शाम
महफ़िल-ए-फ़ितरत की ख़मोशी है तुझ से हम-कलाम
तेरी हस्ती आसमान-ए-तर्क का माह-ए-तमाम
तू मोहब्बत हर नफ़स तेरा मोहब्बत का पयाम
गुलशन-ए-महफ़िल में मानिन्द-ए-सबा आई है तू
सुब्ह-ए-रौशन का पयाम-ए-जाँ-फ़ज़ा लाई है तू
क़ुर्बत-ए-गुल किस क़दर जाँ-बख़्श है ख़ारों से पूछ
चाँद की तनवीर में क्या लुत्फ़ है तारों से पूछ
नश्शा-ए-सहबा में क्या लज़्ज़त है मय-ख़ारों से पूछ
चारासाज़ी में मज़ा क्या क्या है बीमारों से पूछ
रूह-ओ-दिल को जगमगा दे जल्वा आराई तिरी
कम से कम इतना तो कर जाए मसीहाई तिरी
कोई दम में इस गुलिस्ताँ से निकलना है हमें
फ़र्श-ए-गुल से दूर अँगारों पे चलना है हमें
ख़ार-ज़ार-ए-ग़म को पैरों से कुचलना है हमें
जादा-ए-मंज़िल में गिरना है सँभलना है हमें
दर्स ऐसा दे के दिल आज़ुर्दा-ए-मंज़िल न हो
फ़िक्र-ए-ला-हासिल न हो अंदेशा-ए-बातिल न हो
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