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नज़्र-ए-ख़ालिदा

असरार-उल-हक़ मजाज़

नज़्र-ए-ख़ालिदा

असरार-उल-हक़ मजाज़

MORE BYअसरार-उल-हक़ मजाज़

    दिल मसर्रत की फ़रावानी से दीवाना है आज

    देखना ये कौन आख़िर ज़ेब-ए-काशाना है आज

    कैफ़-ए-सहबा-ए-तरब में ग़र्क़-ए-मय-ख़ाना है आज

    हर शजर साक़ी-ए-मय हर फूल पैमाना है आज

    ग़ुंचा-ओ-गुल थे यही लेकिन ये रानाई थी

    इस गुलिस्ताँ में बहार इस धूम से आई थी

    नर्गिस-ए-मख़मूर है लज़्ज़त-ए-कश-ए-ख़्वाब-ए-निशात

    फूट निकला है गुल-ए-नसरीं से सैलाब-ए-नशात

    अहल-ए-महफ़िल के लिए मुश्किल है अब ताब-ए-नशात

    आज पैमानों से छलकेगी मय-ए-नाब-ए-नशात

    पर-फ़िशाँ है जज़्बा-ए-पिन्हाँ उभरने के लिए

    मुज़्तरिब है ज़र्रा ज़र्रा रक़्स करने के लिए

    फिर इधर आए आए ये शमीम-ए-जाँ-फ़ज़ा

    फिर मयस्सर हो हो ऐसा समाँ ऐसी हवा

    छेड़ इस अंदाज़ से मुतरिब-ए-रंगीं-नवा

    टूट जाए आज इक इक तार तेरे साज़ का

    ज़िक्र जिस का ज़ोहरा-ओ-परवीं के काशाने में है

    वो सनम भी आज अपने ही सनम-ख़ाने में है

    ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार

    तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार

    तेरे रुख़ से परतव-ए-मा'सूम-ए-मरियम आश्कार

    तेरे जलवोें की सबाहत से फ़रिश्ते शर्मसार

    गुल पशेमाँ क़ल्ब-ए-बुलबुल रश्क से दो-नीम है

    तेरी बातों में ख़ुमार-ए-कौसर-ओ-तसनीम हैं

    यूँ तो हम हर शम-ए-इल्म-ओ-फ़न के परवाने रहे

    ये हक़ीक़त है कि हम तेरे भी दीवाने रहे

    मुद्दतों अपनी ज़बाँ पर तेरे अफ़्साने रहे

    तू रही बेगाना लेकिन हम बेगाने रहे

    याद तेरी इक ज़माने से हमारी दिल में थी

    तू यहाँ आने से पहले भी इसी महफ़िल में थी

    शौक़ की शोरिश जमाल-ओ-नूर का सैलाब है

    हर कली साज़-ए-तरब है हर नज़र मिज़राब है

    आँख हैराँ रूह-ए-अर्बाब-ए-वफ़ा बेताब है

    ये हमारे ख़्वाब की ता'बीर है ये ख़्वाब है

    लाला-ओ-गुल क्या चमन भी तेरे क़दमों पर निसार

    ये गुहर-हा-ए-सुख़न भी तेरे क़दमों पर निसार

    मुक़द्दस हूर पर्वर्दा-ए-मौज-ए-नसीम

    रूह-ए-इशरत-गाह-ए-साहिल जान-ए-तूफ़ान-ए-अज़ीम

    तू ने तुर्कों को दिखाई है सिरात-ए-मुस्तक़ीम

    फूँक डाले हैं तअ'स्सुब के हिजाबात-ए-क़दीम

    ज़ोफ़ दिखलाई है जब भी फ़ितरत-ए-अहरार ने

    आग बरसा दी है तेरे नुत्क़-ए-गौहर-बार ने

    रह चुकी है हाथ में तेरे वो तेग़-ए-बे-नियाम

    जिस की जुम्बिश ने बदल डाला हुकूमत का निज़ाम

    तर्क-ए-उफ़्तादा को तू ने ही दिया इज़्न-ए-ख़िराम

    तेरे ही हाथों ने छलकाए हैं आज़ादी के जाम

    तू ने जो एहसाँ किया हैं मिल्लत-ए-अहरार पर

    नक़्श हैं अब तक सँवरना के दर-ओ-दीवार पर

    हाँ बता दे हम को भी रूह-ए-अर्बाब-ए-नियाज़

    किस तरह मिटता है आख़िर रंग-ओ-ख़ूँ का इम्तियाज़

    दिल पे क्यूँ कर फ़ाश हो जाते हैं आज़ादी के राज़

    छेड़ते हैं किस तरह महफ़िल में बेदारी का साज़

    तेरी आँखों में सुरूर-ए-इशरत-ए-जम्हूर है

    आह ये जौहर हमारी दस्तरस से दूर है

    महरम-ए-दर्द-ओ-मसर्रत राज़-दार-ए-सुब्ह-ओ-शाम

    महफ़िल-ए-फ़ितरत की ख़मोशी है तुझ से हम-कलाम

    तेरी हस्ती आसमान-ए-तर्क का माह-ए-तमाम

    तू मोहब्बत हर नफ़स तेरा मोहब्बत का पयाम

    गुलशन-ए-महफ़िल में मानिन्द-ए-सबा आई है तू

    सुब्ह-ए-रौशन का पयाम-ए-जाँ-फ़ज़ा लाई है तू

    क़ुर्बत-ए-गुल किस क़दर जाँ-बख़्श है ख़ारों से पूछ

    चाँद की तनवीर में क्या लुत्फ़ है तारों से पूछ

    नश्शा-ए-सहबा में क्या लज़्ज़त है मय-ख़ारों से पूछ

    चारासाज़ी में मज़ा क्या क्या है बीमारों से पूछ

    रूह-ओ-दिल को जगमगा दे जल्वा आराई तिरी

    कम से कम इतना तो कर जाए मसीहाई तिरी

    कोई दम में इस गुलिस्ताँ से निकलना है हमें

    फ़र्श-ए-गुल से दूर अँगारों पे चलना है हमें

    ख़ार-ज़ार-ए-ग़म को पैरों से कुचलना है हमें

    जादा-ए-मंज़िल में गिरना है सँभलना है हमें

    दर्स ऐसा दे के दिल आज़ुर्दा-ए-मंज़िल हो

    फ़िक्र-ए-ला-हासिल हो अंदेशा-ए-बातिल हो

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