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नज़्म
बर्फ़ ने बाँधी है दस्तार-ए-फ़ज़ीलत तेरे सर
ख़ंदा-ज़न है जो कुलाह-ए-मेहर-ए-आलम-ताब पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़
रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दिल रहें हैं सौमा-ए-दस्तार रेहन-ए-मै-कदा
था ज़मीर 'जाफ़री' भी इक मज़ेदार आदमी
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
हाथ में शमला हो सब अशराफ़ की दस्तार का
मार्शल-ला में मगर पहला है टुकड़ा मार का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सब उजला शहर उमँड आया शलवार सजा दस्तार लगा
इस भीड़ के बिफरे तूफ़ाँ में जो डूब गया सो पार लगा
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
और अपने फ़ज़्ल से देगा इजाज़त माँगने की कुछ
तो न दस्तार-ओ-क़बा न जिब्ह-ओ-ख़िरक़ा
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
बर्फ़ की दस्तार बाँधे सफ़-ब-सफ़ पर्बत यहाँ
करते हैं हम्द-ओ-सना अल्लाह की क़ुदरत है ये