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नज़्म
अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि
किसी ने मिरे सर पे फूलों भरा थाल उल्टा दिया
परवीन शाकिर
नज़्म
इस कमरे की दहलीज़ पर सर रख कर रोता है कोई
ये छुप छुप कर रोने वाला अपनी ही तरह महरूम न हो
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
थकन दिन की समेटे शब को घर जाने पे कौन उस के
लिए दहलीज़ पर बैठा... दुआ की मिशअलें दिल में