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नज़्म
ग़ुबार-ए-रहगुज़र हैं कीमिया पर नाज़ था जिन को
जबीनें ख़ाक पर रखते थे जो इक्सीर-गर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम
लैला-ए-नाज़ बरफ़्गंदा-नक़ाब आती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जब मर्ग फिरा कर चाबुक को ये बैल बदन का हाँकेगा
कोई नाज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टाँकेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बहुत दिनों में रास्ता हरीम-ए-नाज़ का मिला
मगर हरीम-ए-नाज़ तक पहुँच गए तो क्या मिला
आमिर उस्मानी
नज़्म
वो मेरी जुरअतों पर बे-नियाज़ी की सज़ा देना
हवस की ज़ुल्मतों पर नाज़ की बिजली गिरा देना
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद