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नज़्म
फ़ज़ाओं में सँवारा इक हद-ए-फ़ासिल मुक़र्रर की
चटानें चीर कर दरिया निकाले ख़ाक-ए-असफ़ल से
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कहा ये सुन के गिलहरी ने मुँह सँभाल ज़रा
ये कच्ची बातें हैं दिल से इन्हें निकाल ज़रा!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम ने इस अहमक़ को आख़िर इसी तज़ब्ज़ुब में छोड़ा
और निकाली राह मफ़र की इस आबाद ख़राबे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये कहते हैं कि अब अरमाँ निकालो अपने बरसों के
तुम्हारे सामने फैला हुआ मैदान सारा है