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नज़्म
हाल के सिक्के को माज़ी का जो सिक्का देख ले
सौ रूपे के नोट के मुँह पर दो अन्नी थूक दे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं नाचती हूँ कोठों पर ख़ुश होती हूँ बस नोटों पर
हर रात हर रात मैं अपना जिस्म बेचती हूँ
अंकिता गर्ग
नज़्म
इक इक की नोट-बुक में ग़लती निकाली उस ने
जो दो को मारा थप्पड़ तो चार कान ऐंठें