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औरतें नहीं जानतीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

औरतें नहीं जानतीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

MORE BYसय्यद काशिफ़ रज़ा

    दिल की दीवारों से

    उदासी को खुरच कर

    एक नज़्म में इकट्ठा करना

    औरतों का पसंदीदा खेल नहीं

    औरतों को वो खेल पसंद नहीं

    जिन के आख़िर में तालियाँ बजाई जा सकें

    औरतों को पसंद नहीं

    लोग जो अपना दिल

    टुकड़े कर के फेंक रहे होते हैं

    जो ज़िंदगी की किताब में

    हाशियों पर दर्ज होते हैं

    और फ़ुट-नोट से ऊपर झाँकने की

    कोशिश करते रहते हैं

    जो किसी काग़ज़ के टुकड़े पर

    तहरीर कर के फेंक देते हैं

    मैं तुम्हारे बग़ैर नहीं रह सकता

    नहीं जानती हैं औरतें

    कोई सादा सी सतर

    काग़ज़ पर कितनी दरश्ती से लिखी जा सकती है

    आराम से पढ़ जाती हैं वो

    नहीं जानती हैं औरतें

    खुरदुरे लफ़्ज़ों से काटी हुई ज़िंदगी

    तेज़ आँच पर रखे हुए दिल

    आँखों में

    बहुत गहरा देखती हुई आँखें

    और एक खेल

    दिल की दीवारों से

    उदासी को खुरच कर

    एक नज़्म में इकट्ठा करने का

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mamnu'u Mausamon Ki Kitab (पृष्ठ 86)
    • रचनाकार : Syed Kashif Reza
    • प्रकाशन : Scheherzade (2012)
    • संस्करण : 2012

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