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नज़्म
क़ौम-ए-आवारा इनाँ-ताब है फिर सू-ए-हिजाज़
ले उड़ा बुलबुल-ए-बे-पर को मज़ाक़-ए-परवाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मियान-ए-शाख़-साराँ सोहबत-ए-मुर्ग़-ए-चमन कब तक
तिरे बाज़ू में है परवाज़-ए-शाहीन-ए-क़हस्तानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शराब-ए-बे-ख़ुदी से ता-फ़लक परवाज़ है मेरी
शिकस्त-ए-रंग से सीखा है मैं ने बन के बू रहना
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हैरती हूँ मैं तिरी तस्वीर के ए'जाज़ का
रुख़ बदल डाला है जिस ने वक़्त की परवाज़ का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नुत्क़ को सौ नाज़ हैं तेरे लब-ए-एजाज़ पर
महव-ए-हैरत है सुरय्या रिफ़अत-ए-परवाज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हर ज़बाँ पर अब सला-ए-जंग है ये भी तो देख
फ़र्श-ए-गीती से सकूँ अब माइल-ए-परवाज़ है