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नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कोई बिस्मिल बनाता है जो मक़्तल में हमें 'बिस्मिल'
तो हम डर कर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं
राम प्रशाद बिस्मिल
नज़्म
रक़्स-ए-मीना से उठे नग़्मा-ए-रक़्स-ए-बिस्मिल
साज़ ख़ुद अपने मुग़न्नी को गुनहगार करें
अहमद फ़राज़
नज़्म
ज़मीं चीं-बर-जबीं है आसमाँ तख़रीब पर माइल
रफ़ीक़ान-ए-सफ़र में कोई बिस्मिल है कोई घाएल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अगर बजा है तो 'बिस्मिल' की अर्ज़ भी सुन लो
चमन है सामने दो-चार फूल तुम चुन लो
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
अभी तो हिज्र का बिस्मिल के ज़ख़्म खाया था
अभी तो कोह-ए-सितम चर्ख़ ने गिराया था
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
तुझ को जिस दिल से मोहब्बत थी वो अब दिल ही नहीं
रक़्स जिस का तुझ को भाता था वो बिस्मिल ही नहीं
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
सूरत-ए-तस्वीर चुप 'बिस्मिल' हुए ये बोल कर
हुस्न की दुनिया है देखो दीदा-ए-दिल खोल कर
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
रहनुमाई तिरी 'बिस्मिल' के लिए सब कुछ है
ना-ख़ुदाई तिरी 'बिस्मिल' के लिए सब कुछ है