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नज़्म
कुछ हो गया ज़माना का उल्टा चलन यहाँ
हुब्ब-ए-वतन के बदले है बुग़ज़-उल-वतन यहाँ
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
दिलों में नफ़रत-ओ-कीना है और बुग़्ज़-ओ-इनाद
मगर लबों पे है बाबा-ए-क़ौम ज़िंदाबाद
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
तंग-नज़री बुग़्ज़ और नफ़रत-भरे त्रिशूल को
पीठ में इंसानियत की इस तरह घोंपा गया
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
मगर मैं कह नहीं सकता अक़ीदत बाज़ रखती है
तअ'स्सुब ख़ुद-पसंदी बुग़्ज़ से किब्र-ओ-हसद से
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
इक क़बीला जो मुख़ालिफ़ था शुऊ'री फ़िक्र का
था तरक़्क़ी-वादियों से जिस को बुग़्ज़-ए-लिल्लाही
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
तअल्लुक़ात का अफ़्सूँ कुदूरतों का ग़ुबार
दिलों का बुग़्ज़, मोहब्बत के दाएरों का हिसार
महमूद अयाज़
नज़्म
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
आज होती है हसद बुग़्ज़-ओ-जफ़ा की तरदीद
इस लिए अहल-ए-वतन सब को मुबारक हो ईद