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नज़्म
ला की मंज़िल मंज़िल-ए-दुश्वार है पुर-ख़ार है
कुफ़्र से दामन छुड़ाना भी बड़ा आज़ार है
नसीम अंसारी
नज़्म
मैं शाइ'र हूँ मुझे अहल-ए-हुनर फ़नकार कहते हैं
मुझे रम्ज़-आश्ना-ए-निकहत-ए-गुलज़ार कहते हैं