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नज़्म
मैं ने हर चंद ग़म-ए-इश्क़ को खोना चाहा
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दुनिया में समोना चाहा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
गो मा-ए-लुत्फ़ से ख़ाली नहीं पिंदार-ए-जुनूँ
याँ ग़म-ए-इश्क़ का यारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
गो मय-ए-लुत्फ़ से ख़ाली नहीं पिंदार-ए-जुनूँ
याँ ग़म-ए-इश्क़ का यारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
हम कि रुम्माज़-ए-रुमूज़-ए-ग़म-ए-पिन्हानी हैं
अपनी गर्दन पे भी है रिश्ता-फ़गन ख़ातिर-ए-दोस्त