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नज़्म
अब वो आँखों के शगूफ़े हैं न चेहरों के गुलाब
एक मनहूस उदासी है कि मिटती ही नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
तुम्हें जब याद करता हूँ तो इक मिटती हुई दुनिया
मिरी आँखों के आईने में पहरों झिलमिलाती है
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
मर कर भी नहीं मिटती ज़मीन की हिर्स उन की
मगर अब सोचता हूँ शायद उन्हें वाक़ई ज़रूरत हो बड़ी क़ब्रों की