अकेली
अजनबी अपने क़दमों को रोको ज़रा
जानती हूँ तुम्हारे लिए ग़ैर हूँ
फिर भी ठहरो ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों-भरी दास्ताँ
साथ लेते चलो ये मुजस्सम फ़ुग़ाँ
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
मेरी अम्मी नहीं
मेरे अब्बा नहीं
मेरी आपा नहीं
मेरे नन्हे से मासूम भय्या नहीं
मेरी इस्मत की मग़रूर किरनें नहीं
वो घरौंदा नहीं जिस के साए-तले
बोरियों के तरन्नुम को सुनती रही
फूल चुनती रही
गीत गाती रही
मुस्कुराती रही
आज कुछ भी नहीं
आज कुछ भी नहीं
मेरी नज़रों के सहमे हुए आईने
मेरी अम्मी के अब्बा के आपा के और मेरे नन्हे से मासूम भय्या के ख़ूँ से
हैं दहशत-ज़दा
आज मेरी निगाहों की वीरानियाँ चंद मजरूह यादों से आबाद हैं
आज मेरी उमंगों के सूखे कँवल मेरे अश्कों के पानी से शादाब हैं
आज मेरी तड़पती हुई सिसकियाँ एक साज़-ए-शिकस्ता की फ़रियाद हैं
और कुछ भी नहीं
भूक मिटती नहीं
तन पे कपड़ा नहीं
आस मादूम है
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
आज दुनिया में मेरा कोई भी नहीं
अजनबी अपने क़दमों को रोको ज़रा
सुनते जाओ ये अश्कों-भरी दास्ताँ
सुनते जाओ ये अश्कों-भरी दास्ताँ
साथ लेते चलो ये मुजस्सम फ़ुग़ाँ
मेरी अम्मी बनो
मेरे अब्बा बन्नो
मेरी आपा बनो
मेरे नन्हे से मासूम भय्या बनो
मेरे इस्मत की मग़रूर किरनें बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो
मेरे कुछ तो बनो
- पुस्तक : aazaadii ke baad delhi men urdu nazm (पृष्ठ 83)
- रचनाकार : ateequllah
- प्रकाशन : urdu academy,delhi (2011)
- संस्करण : 2011
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