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नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शय नज़्र करो
कि मिरे पास ब-जुज़ मेहर ओ वफ़ा कुछ भी नहीं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जल्वा-ए-क़ुदरत का शाहिद हुस्न-ए-फ़ितरत का गवाह
माह का दिल मेहर-ए-आलम-ताब का नूर-ए-निगाह