वा'दा
इस से पहले कि तेरी चश्म-ए-करम
मा'ज़रत की निगाह बन जाए
इस से पहले कि तेरे बाम का हुस्न
रिफ़अत-ए-मेहर-ओ-माह बन जाए
प्यार ढल जाए मेरे अश्कों में
आरज़ू एक आह बन जाए
मुझ पे आ जाए इश्क़ का इल्ज़ाम
और तू बे-गुनाह बन जाए
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
इस से पहले कि सादगी तेरी
लब-ए-ख़ामोश को गिला कह दे
मैं तुझे चारागर ख़याल करूँ
तू मिरे ग़म को ला-दवा कह दे
तेरी मजबूरियाँ न देख सके
और दिल तुझ को बेवफ़ा कह दे
जाने मैं बे-ख़ुदी में क्या पूछूँ
जाने तू बे-रुख़ी से क्या कह दे
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
चारा-ए-दर्द हो भी सकता था
मुझ को इतनी ख़ुशी बहुत कुछ है
प्यार गो जावेदाँ नहीं फिर भी
प्यार की याद भी बहुत कुछ है
आने वाले दिनों की ज़ुल्मत में
आज की रौशनी बहुत कुछ है
उस तही-दामनी के आलम में
जो मिला है वही बहुत कुछ है
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
छोड़ कर साहिल-ए-मुराद चला
अब सफ़ीना मिरा कहीं ठहरे
ज़हर पीना मिरा मुक़द्दर है
और तिरे होंट अंग्बीं ठहरे
किस तिरा तेरे आस्ताँ पे रुकूँ
जब न पाँव तले ज़मीं ठहरे
उस से बेहतर है दिल यही समझे
तू ने रोका था हम नहीं ठहरे
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
मुझ को इतना ज़रूर कहना है
वक़्त-ए-रुख़्सत सलाम से पहले
कोई नामा नहीं लिखा मैं ने
तेरे हर्फ़-ए-पयाम से पहले
तोड़ लूँ रिश्ता-ए-नज़र में भी
तुम उतर जाओ बाम से पहले
ले मिरी जान मेरा वा'दा है
कल किसी वक़्त शाम से पहले
मैं तिरा शहर छोड़ जाऊँगा
- पुस्तक : Muntakhab Shahkar Nazmon Ka Album) (पृष्ठ 182)
- रचनाकार : Munavvar Jameel
- प्रकाशन : Haji Haneef Printer Lahore (2000)
- संस्करण : 2000
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