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नज़्म
हिसाब-ए-माह-ओ-साल ओ रोज़-ओ-शब वो सोख़्ता-बूदश
मुसलसल जाँ-कनी के हाल में रखता भी तो कैसे
जौन एलिया
नज़्म
ज़मीं क्या आसमाँ भी तेरी कज-बीनी पे रोता है
ग़ज़ब है सत्र-ए-क़ुरआन को चलेपा कर दिया तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं दूर कहीं तुम से बैठा इक दीप की जानिब तकता हूँ
इक बज़्म सजाए रक्खी है इक दर्द जगाए रखता हूँ
वसीम बरेलवी
नज़्म
''ताब-ए-गोयाई नहीं रखता दहन तस्वीर का
ख़ामुशी कहते हैं जिस को है सुख़न तस्वीर का''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चाँदनी, क़ौस-ए-क़ुज़ह, औरत, शगूफ़ा, लाला-ज़ार
इल्म का इन नर्म शानों पर कोई रखता है बार?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आख़िर इंसान हूँ मैं भी कोई पत्थर तो नहीं
मैं भी सीने में धड़कता हुआ दिल रखता हूँ
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
किसी को देख ही सकता नहीं है मुश्किल में
ये बात क्यूँ है कि रखता है दर्द वो दिल में