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नज़्म
मोहब्बत जिस में ग़म भी इंतिहा-ए-शादमानी है
मोहब्बत जिस की तफ़्सीर-ओ-वज़ाहत बे-ज़बानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
मुश्किलें ज़ेवर हैं हुस्न-ए-ज़िंदगानी के लिए
रंज-ओ-ग़म ग़ाज़ा हैं रू-ए-शादमानी के लिए
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
ख़ुश हूँ फ़िराक़-ए-क़ामत-ओ-रुख़्सार-ए-यार से
सर्व-ओ-गुल-ओ-समन से नज़र को सताएँ हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रुख़्सार-ए-जहाँ-ताब की पड़ती थीं शुआएँ
या हुस्न के दरिया से कोई मौज रवाँ थी