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नज़्म
जिसे पहाड़ों की ख़ुश्क संगीं बुलंदियों से ख़िराज भेजें
ग़ुलाम ज़ेहनों पे ऐसी लानत की रस्म रखना
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
इस पे ला'नत हो ख़ुदा की ये है शैतानों की राह
सैंकड़ों मर्दों को कर देती है इक पल में तबाह
शातिर हकीमी
नज़्म
ग़ुलामी ने हमारे सारे जौहर ख़ाक कर डाले
हम अपने मुल्क से दूर अब ये लानत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
न होगी भूक की ला'नत न बेकारी न बीमारी
न होगी बे-ईमानी और न अय्यारी न ग़द्दारी
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
रात जो क़ातिलों को पनाह देती है कि वो अपने हाथ धो लें
दिन जो सलामती पर ला'नत भेजता है तुलूअ' होता है
नसरीन अंजुम सेठी
नज़्म
पर तुझे इश्क़-ओ-मोहब्बत से कहाँ फ़ुर्सत है
मय-ए-गुल-रंग की ला'नत से कहाँ फ़ुर्सत है
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
करते हैं मज़दूरी बच्चे जाते नहीं इस्कूल
बच्चों की मज़दूरी ला'नत जुर्म ये एक बड़ा है