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नज़्म
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बाल-ओ-पर निकले
सितारे शाम के ख़ून-ए-शफ़क़ में डूब कर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जुम्बिश-ए-मौज-ए-नसीम-ए-सुब्ह का ए'जाज़ देख
ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर की हसरत-ए-परवाज़ देख
मेला राम वफ़ा
नज़्म
यूँ उफ़ न बाग़-ए-दहर में बरबाद हो कोई
बुलबुल का आशियाँ है कहीं बाल-ओ-पर कहीं
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
मुझ को क़स्साम-ए-अज़ल देता अगर दो बाल-ओ-पर
उड़ के होता मैं भी तेरे साथ सरगर्म-ए-सफ़र
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इरफ़ान शहूद
नज़्म
जिस की दुनिया फ़क्र-ओ-फ़ाक़ा जिस की क़िस्मत रंज-ओ-ग़म
जब्र-ए-क़ुदरत ही ने जिस को कर दिया बे-बाल-ओ-पर
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
ये तीरा बज़्म-ए-जहाँ ये शिकस्त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र
महल बनाए हैं क़ारूनियों ने लाशों पर
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
क्या नज़्र-ए-क़फ़स कर दी परवाज़ की ताक़त भी
हासिल है जब आज़ादी बे-बाल-ओ-परी क्यों है
असद मुल्तानी
नज़्म
पस्ती-ए-ख़ाक पे कब तक तिरी बे-बाल-ओ-परी
फिर मक़ाम अपना सर-ए-अर्श-ए-बरीं पैदा कर