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कोयल

MORE BYसुरूर जहानाबादी

    चमन की अजनबी चिड़िया! कहाँ थी आह! तू

    क्या किसी सहरा के दामन में निहाँ थी आह! तू

    तेरे दिलकश ज़मज़मे थे सब्ज़ा-ज़ारों में ख़मोश

    आशियाना था तिरा गुलशन में बज़्म-ए-बे-ख़रोश

    खींचती वक़्त-ए-सहर दिल को तिरी कू-कू थी

    छाँव में तारों की महव-ए-नग़्मा-ए-दिल-जू थी

    मौसम-ए-सर्मा में सरमाया-ए-सब्र-ओ-शकेब

    बे-सदा तेरा पस-ए-पर्दा था साज़-ए-दिल-फ़रेब

    मर्हबा पैकर-ए-पैक-ए-सुबुक-गाम-ए-बहार

    ले के फिर तू गर्मियों में आई पैग़ाम-ए-बहार

    तू इधर आई फ़ज़ा-ए-गुल का दौर आया उधर

    तू ने गाए गीत और आमों का बौर आया उधर

    ताइरान-ए-बाग़ ने छेड़ा है साज़-ए-इम्बिसात

    तेरे मक़्दम में है शाख़ों पर हम-आहंग-ए-नशात

    पहनी नन्ही नन्ही कलियों ने क़बा-ए-शबनमीं

    रही है कान में तेरी सदा-ए-दिल-नशीं

    कोई अंजुम आसमाँ का और सुबुक परवाज़-ए-शौक़

    रहनुमा है क्या तिरा दिल-दादा-ए-अंदाज़-ए-शौक़

    तू जो आने वाले मौसम का निशाँ पाती हुई

    अपनी मंज़िल पर पहुँच जाती है यूँ गाती हुई

    तेरे मक़्दम में शकेब-ए-ख़ातिर-ए-ना-शाद मैं

    मौसम-ए-गुल को भी देता हूँ मुबारकबाद मैं

    तू चमन में उड़ के क्या आई कि पहुँची बहार

    गा रही हैं छोटी चिड़ियाँ सब्ज़ कुंजों में मल्हार

    दामन-ए-रंगीं में इक दोशीज़ा-ए-नाकत-ख़ुदा

    चुन रही है नन्ही नन्ही सुर्ख़ कलियाँ ख़ुशनुमा

    और तुझ से हम-सुरूद-ए-नग़मा-ए-एजाज़ है

    बज़्म-ए-क़ुदरत में तिरी गोया शरीक-ए-राज़ है

    मीठे नग़्मे गाने वाली चमन की नाज़नीं

    है तर-ओ-ताज़ा हमेशा तेरा कुंज-ए-दिल-नशीं

    और मुसफ़्फ़ा है फ़ज़ा-ए-आसमाँ तेरे लिए

    है शफ़क़-जाम-ए-शराब-ए-अर्ग़वाँ तेरे लिए

    तेरे नग़्मों में असर अंदोह-ए-हिरमाँ का नहीं

    साल में तेरे गुज़र फ़स्ल-ए-ज़मिस्ताँ का नहीं

    मुझ को क़स्साम-ए-अज़ल देता अगर दो बाल-ओ-पर

    उड़ के होता मैं भी तेरे साथ सरगर्म-ए-सफ़र

    बन के हम दोनों रफ़ीक़-ए-मौसम-ए-जोश-ए-बहार

    करते ख़ुश ख़ुश हर बरस गुल-गश्त-ए-दश्त-ओ-कोहसार

    स्रोत :
    • पुस्तक : Durga Sahaye Suroor Jahanabadi(Tehqiqi aur Tanqidi Jaizay) (पृष्ठ 269)
    • रचनाकार : Alif Nazim, Asad barkati
    • प्रकाशन : Educational Publishing House (2010)
    • संस्करण : 2010

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