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नज़्म
धूप में साया भी होता है गुरेज़ाँ जिस दम
तेरी ज़ुल्फ़ें मिरे शानों पे बिखर जाती हैं
हिमायत अली शाएर
नज़्म
बर्क़ की तस्वीर-ए-कुल शानों पे लर्ज़ां चोटियाँ
मरमरीं हाथों में अपनी धुन में गाती चूड़ियाँ
हसरत जयपुरी
नज़्म
बेटियाँ तेरी अपने शानों पे अपने शेरों का बोझ ले कर पाँव की सूरत हैं ईस्तादा
मगर यहाँ बेटियाँ नहीं हैं