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पहली नज़र

हसरत जयपुरी

पहली नज़र

हसरत जयपुरी

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    हाए वो पहली नज़र वो उस की आँखों के पयाम

    वो लजा कर मुस्कुरा कर दस्त-ए-नाज़ुक से सलाम

    हर नज़र में मय-कदे ग़लताँ वो चंचल बाँकपन

    रंग-ए-गुलशन भी तसद्दुक़ यूँ सरापा गुल-बदन

    सर पे झूमर पाँव में पाज़ेब इक ज़ोहरा-ख़िसाल

    और मुजस्सम कहकशाँ उस के दुपट्टे का जमाल

    बर्क़ की तस्वीर-ए-कुल शानों पे लर्ज़ां चोटियाँ

    मरमरीं हाथों में अपनी धुन में गाती चूड़ियाँ

    कान में बुंदे सरापा आफ़ताब-ओ-माहताब

    पर्दा-दारी क्या कहूँ रुख़ पर तजल्ली की नक़ाब

    चाल में आहू की शोख़ी चाल में बदमस्तियाँ

    हर क़दम पर इंक़लाब-ए-दहर की रंगीनियाँ

    हर तकल्लुम इक क़यामत हर तबस्सुम बर्क़-रेज़

    और जिस की सादगी भी इक फ़साना हश्र-ख़ेज़

    बा-तकल्लुफ़ बा-अदब सद-नाज़ वो जन्नत-बदोश

    एक दिन आई मिरी पुर्सिश को वो निकहत-फ़रोश

    आँखों आँखों में दिया पैग़ाम-ए-इश्क़-ओ-बे-ख़ुदी

    ज़िंदगानी इक शराब-ए-तुंद बन कर रह गई

    थी वो दुज़्दीदा निगाह-ए-दिल-सिताँ मेरे लिए

    गया था मेरे घर ही गुल्सिताँ मेरे लिए

    जैसे मिल जाए ख़ुदाई इस तरह मसरूर था

    घर की रौनक़ क्या कहूँ उस वक़्त का इक तूर था

    वो तहय्युर-ख़ेज़ वो काफ़िर नज़ारे अल-अमाँ

    शौक़-ए-मोहकम अल-अमाँ मुबहम इशारे अल-अमाँ

    मेरी जानिब देख कर हँस हँस के शरमाती रही

    निकहत-ए-गेसू से इक इक साँस महकाती रही

    नीची नज़रों से वो कुछ कहना ब-उन्वान-ए-हया

    आप कब तशरीफ़ लाएँगे ये उस की इल्तिजा

    क्या कहूँ कैसे कहूँ रह रह के ये सोचा किया

    जब कुछ भी बन पड़ा तो दर्द में डूबा किया

    यास से उट्ठी नज़र आँसू बहा कर रह गई

    और ज़बान-ए-हाल आख़िर लड़खड़ा कर रह गई

    अल-ग़रज़ होने लगी रुख़्सत वो जान-ए-आरज़ू

    अश्क बरसाने लगा आख़िर जहान-ए-आरज़ू

    उस का जाना था कि वीराँ हो गई मेरी नज़र

    ले गई हमराह अपने रौनक़-ए-दीवार-ओ-दर

    किस क़दर रंगीन थी फ़ितरत की नक़्क़ाशी पूछ

    शोख़ियाँ करती हुई तारों की शहज़ादी पूछ

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