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नज़्म
सर ले के हथेली पर उभरी थी जो दुनिया में
उस क़ौम को ले डूबा शुग़्ल-ए-मै-ओ-मय-ख़ाना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
''हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मह-परस्ती एक दिन
वर्ना हम छेड़ेंगे रख कर उज़्र-ए-मस्ती एक दिन
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
इक न इक दर पर जबीन-ए-शौक़ घिसती ही रही
आदमिय्यत ज़ुल्म की चक्की में पस्ती ही रही
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फाइलें घर में पड़ी हैं और दफ़्तर में है घर
शग़्ल-ए-बेकारी बहुत है वक़्त बेहद मुख़्तसर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
तू और शुग़्ल-ए-रामिश-ओ-रक़्स-ओ-रबाब-ओ-रंग
क्या तेरे साज़ में भी दहकती है कोई आग