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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अब वो नालों की गरज है अब न वो शोर-ए-फ़ुग़ाँ
अब न उठता है कलेजा से मोहब्बत का धुआँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तिरी नस्लें क़यामत तक अमीं हों बाग़-ए-अहमद की
दर-ए-मौला पे ये बंदा है फ़रियादी मुबारक हो
मीर अंजुम परवेज़
नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त