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नज़्म
न कोई साँवले महबूब की यादों का अफ़्साना
न ऐवान-ए-ज़मिस्ताँ की तरफ़ जाने की कुछ ख़्वाहिश
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
लड़कपन की रफ़ीक़ ऐ हम-नवा-ए-नग़मा-ए-तिफ़ली
हमारी ग्यारह साला ज़िंदगी की दिल-नशीं वादी
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
खुली फ़ज़ा की धूप वो कि जिस्म साँवले करे
बुतान-ए-आज़री कि मस्त-ए-ग़ुस्ल-ए-आफ़्ताब थे
अहमद फ़राज़
नज़्म
वो साँवले-पन पर मैदाँ के हल्की सी सबाहत दौड़ चली
थोड़ा सा उभर कर बादल से वो चाँद जबीं झलकाने लगा
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कि इक चालीस-साला तिफ़्ल की रोज़ा-कुशाई है
फ़रिश्ते इस पे हैराँ दम-ब-ख़ुद सारी ख़ुदाई है