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नज़्म
मर्हबा ऐ ख़ाक-ए-पाक-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
यादगार-ए-अहद-ए-माज़ी है तू ऐ जान-ए-जहाँ
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
क्या लेगा ख़ाक-ए-मुर्दा-ओ-उफ़्तादा बन के तू
तूफ़ान बन कि है तिरी फ़ितरत में इंक़लाब
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
इस ख़ाक-ए-दिल-नशीं से चश्मे हुए हैं जारी
चीन-ओ-‘अरब में जिन से होती थी आब्यारी
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ज़र्रा-ए-ख़ाक-ए-वतन मेहर-ए-दरख़्शाँ है मुझे
वो समझते रहें इंग्लैण्ड का माल अच्छा है
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
कोई बताए अज़्मत-ए-ख़ाक-ए-वतन कहाँ है अब
कोई बताए ग़ैरत-ए-अहल-ए-वतन को क्या हुआ