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नज़्म
हंगाम-ए-तरब है अहल-ए-वतन हंगाम-ए-तरब है ग़म न करो
आहिस्ता-रवी ही मंज़िल है मंज़िल का यूँही मातम न करो
अर्श मलसियानी
नज़्म
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
नज़्म
तसल्लुत लाख ये सय्याद-ओ-बर्क़-ओ-बाग़बाँ कर लें
नहीं मुमकिन कि हम बाहर चमन से आशियाँ कर लें
इनाम थानवी
नज़्म
शो'ला-ज़न उन के लहू में है जलाल-ए-महमूद
आज तक जो तह-ए-मेहराब रहे वक़्फ़-ए-सुजूद
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मिरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है