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नज़्म
जिस को देखो वही बा-दीदा-ए-तर है ऐ दोस्त
रोज़ आती है नई एक क़यामत ऐ दोस्त
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
है कुल की ख़बर उन को मगर जुज़ की ख़बर गुम
ये ख़्वाब हैं वो जिन के लिए मर्तबा-ए-दीदा-ए-तर हेच
नून मीम राशिद
नज़्म
क़स्र-ए-तौहीद का इक बुर्ज-ए-मुनव्वर तू है
गुलशन-ए-हक़ के लिए बू-ए-गुल-ए-तर तू है
मोअज़्ज़म अली खां
नज़्म
तू खिलाता है नए गुल जो रवाँ होता है
रंग ये शाख़-ए-गुल-ए-तर में कहाँ होता है