कल की बात लगती है
रोचक तथ्य
(On his birthday April 4, 1988)
प्यार की कहानी भी
मुख़्तसर जवानी भी
वो घड़ी सुहानी भी
वक़्त की रवानी भी
किस के हात लगती है
दश्त बहर-ओ-बर अम्बर
फूल चश्म-ए-तर गौहर
आईना हो या पत्थर
फ़ित्ना-साज़ी-ए-मंज़र
वारदात लगती है
तर्फ़-ए-गुल खिले थे जब
ज़ख़्म ही सिले थे जब
ग़म के सिलसिले थे जब
तुम को कुछ गिले थे जब
सब की मात लगती है
अपनी भूल कुछ भी हो
और उसूल कुछ भी हो
अर्ज़-ओ-तूल कुछ भी हो
जब क़ुबूल कुछ भी हो
काएनात लगती है
शोख़ियाँ इरादों की
नीम-जाँ मुरादों की
ज़ीस्त कम-सवादों की
बे-शुमार यादों की
इक बरात लगती है
बख़्त-ए-ना-रसाई दे
हर कोई दुहाई दे
जब न कुछ दिखाई दे
कौन रहनुमाई दे
सख़्त रात लगती है
जब्र की सियह-पोशी
और क़ज़ा की हम-दोशी
हसरत-ए-वफ़ा-कोशी
मस्लहत की ख़ामोशी
बस नजात लगती है
उफ़ ये दौर-ए-बेचैनी
उलझनें मसाइल की
सोच में बग़ावत भी
जिस से शाइरी मेरी
अक्स-ए-ज़ात लगती है
ऐ मेरी मुहीत-ए-जाँ
कर चुके हर इक मकाँ
नज़्र-ए-शहर-ए-बे-मेहराँ
अब तो राहत-ए-दौराँ
बे-सबात लगती है
जैसे ख़्वाबों की चिलमन
वो उजाड़ सा आँगन
ये हरा-भरा गुलशन
साल हो गए पचपन
कल की बात लगती है
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