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नज़्म
सरमाए के हाथों लोगों की किस तरह मोहब्बत धूल हुई
सदियों से बराबर मेहनत-कश हालात से लड़ते आए हैं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अर्ज़-ए-अलम में ख़्वार हुए हम बिगड़े रहे बरसों हालात
और कभी जब दिन निकला तो बीत गए जुग हुई न रात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
निगाह-ए-ग़ौर से देखो अगर हालात-ए-इंसानी
तो हो सकता है हल ये उक़्दा-ए-मुश्किल ब-आसानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
सिर्फ़ एहसास में हालात की तफ़्सीर कहाँ
सिर्फ़ फ़रियाद में ज़ख़्मों की वो ज़ंजीर कहाँ