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नज़्म
कसीर वादे क़लील उम्रें
अबस हिसाब-ओ-शुमार उस का जो गोश्त इस साल नाख़ुनों से जुदा हुआ है
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
हिसाब-ओ-दफ़्तर ये मेज़ कुर्सी के बा'द मा'लूम हो सकेगा
कि अपनी गुम-गश्ता हसरतों के सहाब में से
सलमान सरवत
नज़्म
बड़े क़िस्से हैं दिल सब्र-ओ-सवाल के सुनने के
बड़ी बातें सैफ-ओ-किताब पे लिखने की
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
यहाँ ये सब लोग अपनी अपनी गवाहियाँ ले के यूँ खड़े हैं
किसी के होंटों पे बरहमी है
गुलाम जीलानी असग़र
नज़्म
इम्तिहाँ सर पर है लड़के लड़कियाँ हैं और किताब
डेट-शीट आई तो गोया आ गया यौम-उल-हिसाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
गुज़रे लम्हों का भी रखते हैं जो उँगली पे हिसाब
वो किसी ग़ार में दुबके लिए हाथों में किताब
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
ख़्वाब अब हुस्न-ए-तसव्वुर के उफ़ुक़ से हैं परे
दिल के इक जज़्बा-ए-मासूम ने देखे थे जो ख़्वाब
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
मश्रिक-ओ-मग़रिब की क़ौमों के लिए रोज़-ए-हिसाब
इस से बढ़ कर और क्या होगा तबीअ'त का फ़साद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुसहफ़-ए-रू-ए-किताबी रू-कश-ए-नाज़-ए-गुलाब
और बन जाए ये नेमत दफ़्तर-ए-इल्म-ए-हिसाब