मेरे दिल के ख़राबे में
एक जहन्नुम है
जिस में झूट फैलाने वालों को
बिना सज़ा सुनाए ही धकेल दिया जाता है
कि मेरे दिल के मैदान में कोई रोज़-ए-महशर नहीं लगेगा
न कोई हिसाब होगा न कोई किताब
न तुम्हारी अपनी नेकी तुम्हारे काम आ सकती है
न किसी और की दु'आ तुम्हें बचा सकती है
अपनी ख़ुदी की ख़ुदा मैं ख़ुद हूँ
मेरे जहान-ए-मन का हर फ़य-कून
मुझ फ़र्द-ए-जुनूँ के कुन से निकलता है
मेरे निज़ाम-ए-शख़्सी में हर सय्यारा-ओ-सितारा
मुझ फ़र्द-ए-वाहिद के हुक्म पर चलता है
मेरे वजूद के कौन-ओ-मकाँ का
कोई अगला जहान नहीं
मेरी ख़िरद की फ़सीलों पर
किसी अन-देखी दुनिया का गुमाँ नहीं
मेरे निज़ाम-ए-शख़्सी की कशिश-ए-सिक़्ल का नाम
सच है
और सच्चाई में हेर-फेर करने वालों का ठिकाना
मौत है
वो मौत जिस के बा'द दुबारा ज़िंदा होने का इम्काँ तो क्या
गुमाँ भी मुमकिन नहीं
और ज़िंदगी
ज़िंदगी मेरे जहान की वो ने'मत है
जिसे तुम चाह कर भी झुटला नहीं सकते
कि मेरे जहान-ए-मन में
एक तुम्हारी चाहत है
और एक मेरी
तुम चाहते हो वो हो जो तुम्हारी चाहत है
मगर होगा वही जो मेरी चाहत है
कि मेरे दिल के जंगल का कोई पत्ता भी
मेरे हुक्म के बग़ैर नहीं हिलता