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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं
किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
थे हर काख़-ओ-कू और हर शहर-ओ-क़रिया की नाज़िश
थे जिन से अमीर ओ गदा के मसाकिन दरख़्शाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
तू न उन की तरह भरना अर्सा-ए-फ़न में छलांग
कोख ता ठंडी रहे बच्चों से और संदल से माँग
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं ने पूछा कि ये क्या हाल बना रखा है
न तो मेक-अप है न बालों को सजा रखा है