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नज़्म
लो इक जी-दार बिसाती ने हर चीज़ लगा दी चार आने
कंघी जापानी चार आने शीशा बग़्दादी चार आने
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
परेशानी से सर के बाल तक सब झड़ गए लेकिन
पुरानी जेब में कंघी जो पहले थी सो अब भी है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
करूँ मैं प्यार से कंघी लिखूँ सफ़र पे तिरे
मैं ऐसी नज़्म कोई जो तुझे रखे सरसब्ज़