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नज़्म
हमारी इस्तलाहों से ज़बाँ ना-आश्ना होगी
लुग़ात-ए-मग़रिबी बाज़ार की भाषा से ज़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ना में हुज़्न-दीदा ज़िंदगी ज़म होती जाती है
थकी नब्ज़ों की ख़स्ता ज़र्ब मद्धम होती जाती है
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
फिर कफ़-आलूदा ज़बानें मदह ओ ज़म की कुमचियाँ
मेरे ज़ेहन ओ गोश के ज़ख़्मों पे बरसाने लगीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादा
उसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
जौन एलिया
नज़्म
मेरी फ़रियाद-ए-जिगर-दोज़ मिरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुई मेरी गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असर कुछ ख़्वाब का ग़ुंचों में बाक़ी है तू ऐ बुलबुल
नवा-रा तल्ख़-तरमी ज़न चू ज़ौक़-ए-नग़्मा कम-याबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है