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नज़्म
मुफ़्लिस करे जो आन के महफ़िल के बीच हाल
सब जानें रोटियों का ये डाला है इस ने जाल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो मेरा शेर जब मेरी ही लय में गुनगुनाती थी
मनाज़िर झूमते थे बाम-ओ-दर को वज्द आता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुल्क भर को क़ैद कर दे किस के बस की बात है
ख़ैर से सब हैं कोई दो-चार दस की बात है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तेज़ झोंकों में वो छम छम का सुरूद-ए-दिल-नशीं
आँधियों में मेंह बरसने की सदा आती हुई