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नज़्म
तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम
तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मुद्रा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तुम्हारी नौकरी की बात है बेटे! मैं अच्छी हूँ
मुझे अब जान का ख़तरा नहीं है और अगर कुछ हो