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नज़्म
कसीर वादे क़लील उम्रें
अबस हिसाब-ओ-शुमार उस का जो गोश्त इस साल नाख़ुनों से जुदा हुआ है
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
कभी कभी तो दरख़्तों की तादाद इतनी बढ़ जाती है
कि मुझे गुज़िश्ता दिन के आदाद ओ शुमार पर
सईदुद्दीन
नज़्म
कोई मौज-ए-... कोई मौज-ए-शुमाल-ए-जावेदाँ जाने
शुमाल-ए-जावेदाँ के अपने ही क़िस्से थे जो गुज़रे
जौन एलिया
नज़्म
आम तख़मीने के रू से उन की तादाद-ओ-शुमार
तूल-ओ-अर्ज़-ए-मुल्क में थी दो करोड़ इकसठ हज़ार
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
सब से पहले इश्क़ में उंगली ही पकड़ी जाए है
रफ़्ता-रफ़्ता फिर कहीं पहुँचे का नंबर आए है