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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ार-ओ-ख़स पर एक दर्द-अंगेज़ अफ़्साने की शान
बाम-ए-गर्दूं पर किसी के रूठ कर जाने की शान
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मिरी फ़ितरत को ख़ूँ-रेज़ी के अफ़्साने से रग़बत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये सब 'रेहाना' के मासूम अफ़्साने सुनाते हैं
वो इन खंडरों में इक दिन सूरत-ए-अफ़्साना रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
त'अल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उमीदें डाल कर आँखों में आँखें मुस्कुराती हैं
ज़माना जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से अफ़्साने सुनाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जिस की उल्फ़त में भुला रक्खी थी दुनिया हम ने
दहर को दहर का अफ़्साना बना रक्खा था