आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "amar katha ebooks"
नज़्म के संबंधित परिणाम "amar katha ebooks"
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन को जुज़्व-ए-ईमाँ कहा गया है
वाइज़ समझ के कीजो तकफ़ीर गोखले की
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
याद आता है, इक दिन किसी से कहा था
तुझे पहन कर दूर के शहर की अजनबी धरतियों में उतर जाऊँगा
कुमार पाशी
नज़्म
पचास पैसे के अनार के लबों पे एक क़तरा नार रख दी
ख़ाक को ये गर्म बोसा कब नसीब था!