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नज़्म
वो फल क्या है जो हर रोज़ मिले हम को लेकिन हम उस का
अंतर देख न पाएँ उस की क़द्र न जानें
कृष्ण मोहन
नज़्म
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अवतार पयम्बर जन्नती है फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बद-क़िस्मत माँ है जो बेटों की सेज पे लेटी है