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नज़्म
फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे
सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सीने के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बताई जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये काली दीवार जो है नामों का क़ब्रिस्तान
वॉशिंगटन के शहर में दफ़्न हैं किस किस के अरमान
अहमद फ़राज़
नज़्म
ये कहते हैं कि अब अरमाँ निकालो अपने बरसों के
तुम्हारे सामने फैला हुआ मैदान सारा है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
जो और किसी का मान रखे तो उस को भी अरमान मिले
जो पान खिला दे पान मिले जो रोटी दे तो नान मिले
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तिरे मातम में शामिल हैं ज़मीन ओ आसमाँ वाले
अहिंसा के पुजारी सोग में हैं दो जहाँ वाले
नज़ीर बनारसी
नज़्म
सब ऐश मुहय्या हो आ कर जिस जिस अरमान की बारी हो
जब सब अरमान निकलता हो तब देख बहारें जाड़े की