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नज़्म
अब किसी के जाल में ये क़ैद हो सकता नहीं
था 'असर' जिस का असीर-ए-दाम रुख़्सत हो गया
शाहीन इक़बाल असर
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जिस तरह परिंदा सहरा का पानी की तलाश में फिरता है
तू ढूँढता मुझ को आएगा क्यों मुझ से नफ़रत करता है
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
एक आग़ोश-ए-हसीं शौक़ की मेराज है क्या
क्या यही है असर-ए-नाला-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं