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नज़्म
तुम मगर रखते हो एक इंसान की नोक और पलक
''बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
रखते हैं जिस की उल्फ़त गाते हैं जिस का नग़्मा
आक़ा-ए-बंदा-पर्वर शाह-ए-दकन हमारा
सुग़रा हुमयूँ मिर्ज़ा
नज़्म
आप फ़रमाते हैं तू ने रात को नाले किए
बंदा-पर्वर 'औज' तू आदी नहीं फ़रियाद का
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
मेरी तारीख़-ओ-अदब ही में नहीं अल्फ़ाज़-ए-लाफ़
बंदा-पर्वर है मुझे कम-माएगी का ए'तिराफ़
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
आप अपने रंग में हैं मैं हूँ अपने रंग में
आप को ऐ बंदा-पर्वर मेरे अफ़्साने से क्या
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
है अब तक सेहर सा छाया तिरी जादू-नवाई का
दिल-ए-उर्दू पे अब तक दाग़ है तेरी जुदाई का
मयकश अकबराबादी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था