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नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो कैसे अपना बंजर नाम बंजर-पन में बोते हैं
मैं ''उर्र'' से आज तक इक आम शहरी हो नहीं पाया
जौन एलिया
नज़्म
ये अपना वतन है अपना वतन है अपने वतन से प्यार हमें
इस देस के हर ज़र्रे में नज़र आता है नया संसार हमें