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नज़्म
जहाँ का ज़र्रा ज़र्रा यास बरसाए तो आ जाना
दर-ओ-दीवार पर अंदोह छा जाए तो आ जाना
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
चश्मा-ए-सर ज्यूँ है जो बहता रहेगा याँ वही
सब उतर जाएँगी चढ़ चढ़ नद्दियाँ बरसात की