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नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो शम्अ-ए-इल्म-ए-मग़रिब सय्यद ने की थी रौशन
बिखरी हुई हैं जिस की किरनें हर अंजुमन में
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़