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नज़्म
फ़न था इक मतलब-बरारी लोग थे मतलब-परस्त
इस-क़दर बिगड़ा हुआ था ज़िंदगी का बंदोबस्त
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
है मिज़ाज उस वक़्त कुछ बिगड़ा हुआ सय्याद का
ऐ असीरान-ए-क़फ़स मौक़ा नहीं फ़रियाद का